संस्कृत माँ, हिंदी गृहिणी और अंग्रेजी नौकरानी है
''मैं जब 1935 में भारत आया तो अचंभित और दु:खी हुआ।मैंने महसूस किया कि यहाँ पर बहुत से पढ़े-लिखे लोग भी अपनीसांस्कृतिक परम्पराओं के प्रति जागरूक नहीं हैं। यह भी देखा कीलोग अंग्रेजी बोलकर गर्व का अनुभव करते हैं। तब मैंने निश्चयकिया कि आम लोगों की इस भाषा में महारत हासिल करूँगा।''

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