
गुरुवार, 7 मार्च 2013
शिवलिंगाशटक स्तोत्र
ब्रह्म्मुरारिसुराचित लिंगं, निर्मलभाषीतशोभित लिंगं।
जन्मजदुःखविनाशक लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 1
भावार्थ : मै उन सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ जिनकी ब्रह्मा, विष्णु एवं देवताओं द्वारा अर्चना की जाती है। जो सदैव निर्मल भाषाओं द्वारा पूजित हैं तथा जो लिंग जन्म-मृत्यु के चक्र का विनाश करता है अर्थात मोक्ष प्रदान करता है।
देवमुनिप्रवराचित लिंगं, कामदहं करुणाकर लिंगं ।
रावण दर्प विनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 2
भावार्थ : देवताओं और मुनियों द्वारा पूजित लिंग, जो काम का दमन करता है तथा करुणामय शिव का स्वरूप है। जिसने रावण के अभिमान का भी नाश किया, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
सर्वसुन्धितसुलेपित लिंगं, बुद्धिविवर्धनकारण लिंगं।
सिद्धसुरासुरवन्दित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 3
भावार्थ : सभी प्रकार के सुघं धित पदार्थों द्वारा सुलेपित लिंग, जो कि बुद्धि का विकास करने वाला है तथा सिद्ध सुर ( देवताओं) एवं असुरों (दैत्यों) सभी के लिए वन्दित है, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
कनकमहामणिभूषित लिंगं, फणीपतिवेष्टितशोभित लिंगं।
दक्षसुयज्ञविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 4
भावार्थ : स्वर्ण एवं महामणियों से विभुषित, सर्पों के स्वामी से शोभित सदाशिव लिंग जो कि दक्ष के यज्ञ का विनास करने वाले हैं। उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
कुमकुमचंदनलेपित लिंगं, पंङजहारसुशोभित लिंगं।
संञि्तपापविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 5
भावार्थ : कुमकुम एवं चंदन से लेपित, कमल के हार से सुशोभित सदाशिव लिंग जो सभी संचित पापों से मुक्ति प्रदान करने वाला है। उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
देवगणार्चितसेवित लिंगं, भवैर्भकि्तभिरेव च लिंगं।
दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 6
भावार्थ : सभी देवों और गणों द्वारा शुद्ध विचार एवं भावों द्वारा पूजित है। जो करोङों सूर्य समान प्रकाशित हैं, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
अष्टदलोपरिवेषि्टत लिंगं, सर्वसमुदभ्वकारण लिंगं।
अष्टदरिद्रविनाशित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 7
भावार्थ :आठों दलों में मान्य एवं आठों प्रकार की दरिद्रता का नाश करने वाले जो सभी प्रकार के सर्जन के परम कारण हैं, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
सुरगुरूसुरवरपूजित लिंगं, सुरवनपुष्पसदार्चित लिंगं।
परात्परं परमात्मक लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 8
भावार्थ : देवताओं और देवगुरू द्वारा स्वर्ग वाटिका के पुष्पों से पूजित परमात्मा स्वरूप जो सभी व्याख्याओं से परे हैं, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
जन्मजदुःखविनाशक लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 1
भावार्थ : मै उन सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ जिनकी ब्रह्मा, विष्णु एवं देवताओं द्वारा अर्चना की जाती है। जो सदैव निर्मल भाषाओं द्वारा पूजित हैं तथा जो लिंग जन्म-मृत्यु के चक्र का विनाश करता है अर्थात मोक्ष प्रदान करता है।
देवमुनिप्रवराचित लिंगं, कामदहं करुणाकर लिंगं ।
रावण दर्प विनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 2
भावार्थ : देवताओं और मुनियों द्वारा पूजित लिंग, जो काम का दमन करता है तथा करुणामय शिव का स्वरूप है। जिसने रावण के अभिमान का भी नाश किया, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
सर्वसुन्धितसुलेपित लिंगं, बुद्धिविवर्धनकारण लिंगं।
सिद्धसुरासुरवन्दित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 3
भावार्थ : सभी प्रकार के सुघं धित पदार्थों द्वारा सुलेपित लिंग, जो कि बुद्धि का विकास करने वाला है तथा सिद्ध सुर ( देवताओं) एवं असुरों (दैत्यों) सभी के लिए वन्दित है, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
कनकमहामणिभूषित लिंगं, फणीपतिवेष्टितशोभित लिंगं।
दक्षसुयज्ञविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 4
भावार्थ : स्वर्ण एवं महामणियों से विभुषित, सर्पों के स्वामी से शोभित सदाशिव लिंग जो कि दक्ष के यज्ञ का विनास करने वाले हैं। उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
कुमकुमचंदनलेपित लिंगं, पंङजहारसुशोभित लिंगं।
संञि्तपापविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 5
भावार्थ : कुमकुम एवं चंदन से लेपित, कमल के हार से सुशोभित सदाशिव लिंग जो सभी संचित पापों से मुक्ति प्रदान करने वाला है। उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
देवगणार्चितसेवित लिंगं, भवैर्भकि्तभिरेव च लिंगं।
दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 6
भावार्थ : सभी देवों और गणों द्वारा शुद्ध विचार एवं भावों द्वारा पूजित है। जो करोङों सूर्य समान प्रकाशित हैं, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
अष्टदलोपरिवेषि्टत लिंगं, सर्वसमुदभ्वकारण लिंगं।
अष्टदरिद्रविनाशित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 7
भावार्थ :आठों दलों में मान्य एवं आठों प्रकार की दरिद्रता का नाश करने वाले जो सभी प्रकार के सर्जन के परम कारण हैं, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
सुरगुरूसुरवरपूजित लिंगं, सुरवनपुष्पसदार्चित लिंगं।
परात्परं परमात्मक लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं ।। 8
भावार्थ : देवताओं और देवगुरू द्वारा स्वर्ग वाटिका के पुष्पों से पूजित परमात्मा स्वरूप जो सभी व्याख्याओं से परे हैं, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
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