गुरुवार, 21 मार्च 2013

स्त्री को अच्छी-बुरी परिस्‍ि‍थतियों में अपने पति और परिवार का साथ नहीं छोड़ना चाहिए


स्त्री को अच्छी-बुरी परिस्‍ि‍थतियों में अपने पति और परिवार का साथ नहीं छोड़ना चाहिए

''सुता-बहू कभी माँ बनकर 
सबके ही सुख-दुःख को सहकर 
अपने सब फ़र्ज निभाती है
तभी तो नारी कहलाती है'' 
भारतीय संस्कृति में नारी का परम्परागत आदर्श है 'यत्र नार्यस्तु  पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'। भारतीय संस्कृति इसके जननी, भगिनी, पत्नी तथा पुत्री के पवित्र रूपों को अंगीकार करती है। जिसमें ममता, करुणा, क्षमा, दया, कुलमर्यादा का आचरण तथा परिवार एवं स्वजनों के प्रति बलिदान की भावना हो, वह भारतीय नारी का आदर्श रूप है। 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी' नारी का मातृ-रूप महत्वपूर्ण आदर्श है। लेकिन भारतीय संस्कृति में नारी पतिव्रत-धर्म, मातृ-रूप से भी अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। आधुनिक युग में भी शिक्षित, जागरूक, चरित्रवान आदर्श सुपत्नी ही भारतीय नारी है। भारतीय सन्दर्भ में स्त्री-विमर्श दो विपरीत धुर्वों पर टिका है। एक ओर परम्परागत भारतीय नारी की छवि है जो सावित्री जैसे मिथकों में अपना मूर्त रूप पाती  है। दूसरी ओर घर-परिवार तोड़ने वाली स्वार्थी और कुलटा रूप में विख्यात पाश्चात्य नारी की छवि है। भारतीय संस्कृति के अनुसार  वही पत्नी सबसे अच्छी कहलाती है जो पवित्र, घर के काम-काज में निपुण है, पतिव्रत-धर्म का पालन करती है, पति व उसके परिवार का पूरा-पूरा ध्यान रखती है। आचार्य चाणक्य कहते हैं की वही पत्नी सबसे अच्छी है जो मन, वचन और कर्म से पवित्र हो, किसी भी परिस्‍ि‍थति में पति से कोई भेदभाव न रखती हो और न ही उसका मन दुखाती हो। पति से कोई बात न छिपाती हो और हमेशा सच का आचरण रखती हो। इस विषय में सोंदर्य, पतिव्रत, धर्म, त्याग व स्नेह की प्रतिमूर्ति सीता  का चरित्र आज भी प्रासंगिक है। शास्त्रों में सीता को धरती पुत्री माना गया है। सीता सहनशील, विद्वान्, पतिव्रता, एक अच्छी बहू , कुशल गृहणी आदि सभी गुणों से युक्त थी, जो स्त्रियों को महान बनाते हैं। हजारों सेवक होने के बाद भी वह अपने पति श्रीराम की सेवा स्वयं करती थी। वनवास राम को हुआ लेकिन सीता भी उनके साथ गयी और पति के सुख-दुःख में भागीदार बनी। रावण के वैभवशाली राज्य में रहकर जिसका मन विचलित नहीं हुआ यानि अपना चरित्र नहीं छोड़ा। सीता आजकल की नारियों के लिए एक उदाहरण है कि स्त्रियों को कैसी भी परिस्‍ि‍थति हो चाहे अच्छी या बुरी अपने पति और परिवार का भूलकर भी त्याग नहीं करना चाहिए। जो स्त्रियाँ पति और परिवार का त्याग करती हैं, उन्हें कष्ट के अलावा कुछ भी नहीं मिलता और समाज भी उन्हें सम्मान नहीं देता। ऐसी  स्त्रियों का जीवन सुखमय नहीं कहा जा सकता। अत: एक नारी का कर्तव्य बनता है कि प्रत्येक परिस्‍ि‍थति में अपने चरित्र को स्वच्छ रखते हुए अपने पति और परिवार का साथ न छोड़े। 
                                                                                                                          - जय प्रकाश भारद्वाज 
                                                                                                                                मुख्य सम्पादक
                                                                                                                               'द वैदिक टाइम्स'  यह लेख कितना उपयोगी है:
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