मंगलवार, 26 मार्च 2013

मम्मी-पापा रहम करो मुझे भी इस जग में आ जाने दो


मम्मी-पापा रहम करो मुझे भी इस जग में आ जाने दो

by Jai Parkash (नोट्स) on 22 मार्च 2013 को 07:44 अपराह्न बजे
एक बूंद समाई गर्भ में, माँ बनने का अहसास हुआ।
सोचा, गूंजेगी किलकारी, घर में खुशियों का त्योहार हुआ।
मातम सा छाया तब घर में, जब पता लगा कन्या है।
दादी बोली, हमें नहीं चाहिए, पिता की नहीं तमन्ना है।
सिर्फ लिंग जानकर दुखी हुए, क्या इतनी बदकिस्मत वाली हूँ।
जिस नारी वंश से पिता, तूने जन्म लिया, मैं उसी वंश की फुलवारी हूँ।  
माँ क्या तुम चाहती हो, मर जाऊं मैं, इस जग में आने से पहले।
क्या अपने दिल के टुकड़े को, तुम कर दोगी डॉक्टर के हवाले।
माँ रोऊँ भी तो कैसे रोऊँ, मुँह से आवाज नहीं आती।
ये पाप नहीं महापाप है, मत बनो तुम इसके भागी। 
मैं भगत सिंह, आजाद गुरु जैसे सपूत जन सकती हूँ।
मैं कल्पना, मदर टेरेसा बनकर तुम्हारा नाम रोशन कर सकती हूँ।
मैं कर सकती हूँ, वो सब कुछ, जो पुरुष आज का करता है।
खेल, विज्ञान, डाक्टरी में, नारी का सिक्का चलता है।
सिर्फ दहेज खर्च के डर से, तुम मुझे मारना चाहते हो।
मैं कली तुम्हारे आंगन की, मुझे आंगन महकाने दो।
माँ रहम  करो, पिता रहम करो, मुझे इस जग में आ जाने दो। 
मुझे फूल बनकर खिल जाने दो, मुझे इस जग में आ जाने दो। 
-जय प्रकाश भारद्वाज, सम्पादक,'द वैदिक टाइम्स'

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