मंगलवार, 26 मार्च 2013

भाग्य निर्माण में चन्द्रमा का अहम रोल


भाग्य निर्माण में चन्द्रमा का अहम रोल

by Jai Parkash (नोट्स) on 25 मार्च 2013 को 08:57 पूर्वाह्न बजे
 ''मन चंगा तो,
कठोती में गंगा''
भारतीय ज्योतिष में चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है। मन में विचार उत्पन्न होते हैं और मन के विचार ही उसके भाग्य का निर्माण करने में सहायक होते हैं। शुभ (अच्छे) विचार व्यक्ति को समृद्धि और सफलता की ओर, जबकि अशुभ (बुरे) विचार अवनति की ओर  ले जाते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है,'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत'। 
चन्द्रमा का बुद्धि, विवेक, कल्पनाशक्ति और वाणी पर अधिकार होता है।  शुक्ल पक्ष या स्वराशी का  शुभ चन्द्रमा आशावादी (सकारात्मक सोच) बनता है। जबकि क्षीण या अशुभ चन्द्रमा निराशावादी (नकारात्मक सोच) का निर्माण करता है जिससे क्रोध, भय, ईर्ष्या, द्वेष, निराशा व अनिद्रा आदि विषयों का जन्म होता है। क्रोध, भय तथा चिंताग्रस्त मन:स्थिति में विवेक का अभाव होने से उचित निर्णय नहीं लिया जा सकता। स्वामी शिवानन्द के अनुसार, ''क्रोध मानसिक दुर्बलता की निशानी है, इसका प्रारम्भ मूर्खता से तथा अंत पश्चाताप से होता है। '' वैसे ही जब क्रोध अपनी चरम सीमा पर होता है तो मधुर रिश्तों में भी कड़वाहट घोल देता है।  चाहे वह सम्बंध पति-पत्नी का हो, पिता-पुत्र का या चाहे साझेदार का हो। ऐसे व्यक्ति मन की निराशा और चिंता को भाग्य के भरोसे छोड, सोचने लगते हैं की हमारा जीवन ही कष्ट भोगने के लिए है। 
मानस रोग एक ऐसा रोग है, जो व्यक्ति को अंदर से खोखला क्र देता है। जब चन्द्र ग्रह किसी अशुभ भाव या किसी अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो बुद्धि भ्रमित्त हो जाती है, मन की एकाग्रता भंग हो जाती है, वाणी में कड़वाहट तथा शक्ति क्रोध में परवर्तित हो जाती है। जिन लोगों का चन्द्रमा निर्बल होता है उन्हें क्रोध बहुत आता  है, मन बैचन रहता है। अत: मन पर नियन्त्रण रखने या जिनका चन्द्र ग्रह की निर्बल है, उन्हें निम्न उपाय करने से काफी लाभ प्राप्त हो सकता है। 
० अमावस्या को पितरों के नाम गायत्री मन्त्र का जप करना चाहिए।
० पानी में दूध डालकर स्नान करना चाहिए।
० आग्नेय कोण में शयन नहीं करना चाहिए। 
० दूध में काले तिल डालकर शिवलिंग स्नान कराएँ।
० शुक्लपक्ष के सोमवार से ' ॐ जूं स:' मन्त्र का शिवालय या शिवमूर्ति के समक्ष जाप करना चाहिए। 
                                                                                       
                                                           --जय प्रकाश भारद्वाज द्वारा वैदिक टाइम्स पौष-माघ २०१३ में प्रकाशित  
                                                     

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