मंगलवार, 19 मार्च 2013

ऋग्वेदोक्तं लक्ष्मी सूक्तम्


                          ऋग्वेदोक्तं लक्ष्मी सूक्तम्






पद्मानने      पद्मिनि      पद्मपत्रे       पद्मप्रिये       पद्मदलायताक्षि।
                               विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व।।१।।  
भावार्थ: हे लक्ष्मी देवी! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं। सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।
                                      पद्मानने        पद्मऊरू        पद्माक्षी         पद्मसम्भवे।
                                      तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्‌।।२।।  

भावार्थ: हे लक्ष्मी देवी! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं। आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है। हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूं, आप मुझ पर कृपा करें।
                                          अश्वदायी     गोदायी     धनदायी      महाधने।
                                          धनं मे जुष तां देवि सर्वांकामांश्च देहि मे
।।३।।   
भावार्थ: हे देवी! अश्व, गौ, धन आदि देने में आप समर्थ हैं। आप मुझे धन प्रदान करें। हे माता! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण करें
                                          पुत्र   पौत्र   धनं   धान्यं   हस्त्यश्वादिगवेरथम्‌।
                                          प्रजानां भवसी माता आयुष्मंतं करोतु मे।। ४।।  
भावार्थ: हे देवी! आप सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं। आप मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, गौ, बैल, रथ आदि प्रदान करें। आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएं।
                                          धनमाग्नि  धनं  वायुर्धनं   सूर्यो   धनं   वसु।
                                          धन मिंद्रो बृहस्पतिर्वरुणां धनमस्तु मे।।५।।  

भावार्थ: हे लक्ष्मी! आप मुझे अग्नि, धन, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएं।
                                         वैनतेय    सोमं     पिव    सोमं    पिवतु    वृत्रहा।
                                         सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः।।६।।  

भावार्थ: हे वैनतेय पुत्र गरुड़! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने वाले हैं, मुझे अमृतयुक्त धन प्रदान करें।
                                    न  क्रोधो  न  च  मात्सर्यं  न  लोभो   नाशुभामतिः।
                                    भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्त जापिनाम्‌।।७।।  
भावार्थ: इस सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती, वे सत्कर्म की ओर प्रेरित होते हैं।
                              सरसिजनिलये   सरोजहस्ते    धवलतरांशुक     गंधमाल्यशोभे।
                             भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरी प्रसीद मह्यम्‌।।८।।  

भावार्थ: हे त्रिभुवनेश्वरी! हे कमलनिवासिनी! आप हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। श्वेत, स्वच्छ वस्त्र, चंदन व माला से युक्त हे विष्णुप्रिया देवी! आप सबके मन की जानने वाली हैं। आप मुझ दीन पर कृपा करें।
                                            विष्णुपत्नीं    क्षमां   देवीं    माधवीं   माधवप्रियाम्‌।
                                            लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम।।९।।  

भावार्थ: भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी, माधवप्रिया, भगवान अच्युत की प्रेयसी, क्षमा की मूर्ति, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूं।
                                       महालक्ष्म्यै     च    विद्महे    विष्णुपत्न्यै ।
                                       च धीमहि, तन्ने लक्ष्मीः प्रचोदयात्।।१०।।
भावार्थ: हम महादेवी लक्ष्मी का स्मरण करते हैं। विष्णुपत्नी लक्ष्मी हम पर कृपा करें, वे देवी हमें सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें।
                                  आनन्दः   कर्दमः   श्रीदश्चिक्लीत   इति   विश्रुताः।
                                 ऋषयश्च श्रियः पुत्राः मयि श्रीर्देविदेवता मताः।।११।।
भावार्थ: जो चंद्रमा की आभा के समान शीतल और सूर्य के समान परम तेजोमय हैं उन परमेश्वरी लक्ष्मीजी की हम आराधना करते हैं। 
                                     ऋणरोगादिदारिद्रय          पापक्षुदपमृत्यवः।
                                     भयशोकमनस्ताप नश्यन्तु मम सर्वदा।।१२।।
भावार्थ: ऋण, रोग, दारिद्रय, घोर पाप, भय, शोक तथा सभी क्लेश हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं। 
                             श्री   वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं   महीयते ।
                             धान्यं धनं पशु बहुतपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः।।१३।। 
भावार्थ: इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति श्री, तेज, आयु, स्वास्थ्य से युक्त होकर शोभायमान रहता है। वह धन-धान्य व पशु धन सम्पन्न, पुत्रवान होकर दीर्घायु होता है।
                                                ।। इति ऋग्वेदोक्तं लक्ष्मी सूक्तम् समाप्त ।।


गुरुवार, 7 मार्च 2013

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शिवलिंगाशटक स्तोत्र

ब्रह्म्मुरारिसुराचित  लिंगं,                निर्मलभाषीतशोभित लिंगं। 
जन्मजदुःखविनाशक   लिंगं,      तत्प्रणमामि  सदाशिव   लिंगं ।। 1
भावार्थ : मै उन सदाशिव  लिंग को प्रणाम करता हूँ जिनकी ब्रह्मा, विष्णु  एवं देवताओं द्वारा अर्चना की जाती है। जो सदैव निर्मल भाषाओं द्वारा पूजित हैं तथा जो लिंग जन्म-मृत्यु  के चक्र का विनाश करता है अर्थात मोक्ष प्रदान करता है। 
देवमुनिप्रवराचित  लिंगं,            कामदहं  करुणाकर  लिंगं ।
रावण दर्प विनाशन  लिंगं,  तत्प्रणमामि  सदाशिव   लिंगं ।।  2
भावार्थ :  देवताओं और मुनियों द्वारा  पूजित लिंग, जो काम का दमन करता है तथा करुणामय शिव का स्वरूप है। जिसने रावण के अभिमान का भी नाश किया, उन सदाशिव  लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
सर्वसुन्धितसुलेपित  लिंगं,            बुद्धिविवर्धनकारण  लिंगं।
सिद्धसुरासुरवन्दित  लिंगं,    तत्प्रणमामि  सदाशिव   लिंगं ।।  3
भावार्थ : सभी प्रकार के सुघं धित पदार्थों द्वारा सुलेपित लिंग, जो कि बुद्धि का विकास करने वाला है तथा सिद्ध सुर ( देवताओं) एवं असुरों (दैत्यों) सभी के लिए वन्दित है, उन सदाशिव  लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
कनकमहामणिभूषित  लिंगं,    फणीपतिवेष्टितशोभित  लिंगं।
दक्षसुयज्ञविनाशन  लिंगं,       तत्प्रणमामि  सदाशिव   लिंगं ।।  4
भावार्थ : स्वर्ण एवं महामणियों से विभुषित, सर्पों के स्वामी से शोभित सदाशिव लिंग जो कि दक्ष के यज्ञ का विनास करने वाले हैं। उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
कुमकुमचंदनलेपित लिंगं,                पंङजहारसुशोभित लिंगं।
संञि्तपापविनाशन लिंगं,   तत्प्रणमामि  सदाशिव   लिंगं ।।   5
भावार्थ : कुमकुम एवं चंदन से लेपित, कमल के हार से सुशोभित सदाशिव लिंग जो सभी संचित पापों से मुक्ति  प्रदान  करने वाला है। उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
देवगणार्चितसेवित  लिंगं, भवैर्भकि्तभिरेव च  लिंगं।
दिनकरकोटिप्रभाकर  लिंगं,  तत्प्रणमामि  सदाशिव   लिंगं ।।   6
भावार्थ : सभी देवों और गणों द्वारा शुद्ध   विचार एवं भावों द्वारा  पूजित है। जो करोङों सूर्य समान प्रकाशित हैं, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं। 
अष्टदलोपरिवेषि्टत   लिंगं,          सर्वसमुदभ्वकारण  लिंगं।
अष्टदरिद्रविनाशित  लिंगं,    तत्प्रणमामि  सदाशिव   लिंगं ।।   7
भावार्थ :आठों दलों में मान्य एवं आठों प्रकार की दरिद्रता का नाश करने वाले जो सभी प्रकार के सर्जन   के परम कारण हैं, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं।
सुरगुरूसुरवरपूजित  लिंगं,           सुरवनपुष्पसदार्चित  लिंगं।
परात्परं परमात्मक  लिंगं,    तत्प्रणमामि  सदाशिव   लिंगं ।।   8
भावार्थ : देवताओं और देवगुरू  द्वारा स्वर्ग वाटिका के पुष्पों से पूजित परमात्मा  स्वरूप जो सभी व्याख्याओं से परे हैं, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूं। 


बुधवार, 6 मार्च 2013


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महाकुम्भ पर्व 2013